मंगलवार, 1 मार्च 2022

बुढ़ी माँ मेरी माँ सबकी माँ




 
बुढ़ी माँ मेरी माँ सबकी माँ
 
माँ कचहरी कि कोई कारवाई नहीं,
जिसे अगली तारीख को टाल देते हो तुम ।
 
माँ कोने में पड़ी चरमड़ाई सी कोई चारपाई नही,
जिसे फेकते हुए कुछ सोच ठहर जाते हो तुम ।
 
माँ गुजरे वक्‍त कि काली स्‍याही नहीं,
जिसे घर के अंधेरें कोने में सुखने के लिए उड़ेल देते हो तुम ।
 
माँ किसी पुरानी दिवार कि रंगीन पट्टी नहीं,
जिसके फीके पड़ें रंग को बदल देते हो तुम ।
 
माँ कपड़े पर पड़ी पुरानी धूल नहीं,
जिसे अनदेखा कर दूर झटक देते हो तुम ।
 
माँ कि दमें की खांसी कोई छुत कि बिमारी नहीं,
जिसके पास जाते ही सहम जाते हो तुम ।
 
ऊंच – नीच मान सम्‍मान सबकी सुद है तुझे ,
पर तेरे दर्द में जो  सबसे पहले है रोती 
क्‍याें ? उस ‘हृदय’ को ही भुल जाते हो तुम ।

--- आतिश

 
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. लोगों की सुप्तावस्था में पड़ी आत्मा को जागृत करती हुई बहुत बहुत बहुत ही उम्दा रचना!एक एक पंक्ति बहुत ही सरहानीय हैं! माँ के लिए प्यार और सम्मान साफ़ झलक रहा है!
    सर आपने गलती से फीके की जगह फिके और धूल की जगह धुल लिख दिया है कृपया एक बार चेक कर लीजिए!
    सर हदय का मतलब हृदय होता है क्या?या गलती से लिख गया है?

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा लगा माँ किया होती है एक अलग अंदाज में बताना

    जवाब देंहटाएं

Featured Post

Feel My Words: Dear ज़िन्दगी !

    Dear ज़िन्दगी !    बहुत दिन हुआ तुझसे बिछड़े हुए ... यार कोई आईंना लाओं, देखना है कितना बदला हूँ मैं ।।   यादों कि किचड़ में रोज उतरता ह...