मंगलवार, 4 जनवरी 2022

मातृप्रेम


 
मातृप्रेम
 
माँ के आँचल में जो सुख मन पावें,
सो सुख जग में और कहीं मिल न पावें ।
 
हर कोई है जाने माँ ममता कि मुरत होवें,
पर कोई-कोई ही ध्‍यावें परब्रह्म कि वही सुरत होवें ।
 
कितनी ममता कितनी करूणा मन को भावें,
देख विपत्ति में गैरन को भी मनसुधा आपन पुत बतावें ।
 
रोम – रोम वस सोच इक बात शिहर जावें,
साथ शीतल पुवाई लाल तक उसके कोई दु:ख न लावें ।
 
दिल ही दिल में फुट फुटकर ममता है रोवें,
देख असहाय लाल को आपन खड़ी ढाल वो बन जावें ।
 
जग के नव निर्माण रूप में सर्वोत्‍म पात्र निभावें,
इसलिए जग जननी जगमाता मातृ कहलावें ।
 
देव – दानव – मानव सृष्टि पर सब इनका अभार बतावें,
सो हर कण हर क्षण सत् सत् नमनकार करें और गुण गावें ।
 

--- आतिश

5 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०६-०१ -२०२२ ) को
    'लेखनी नि:सृत मुकुल सवेरे'(चर्चा अंक-४३०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत सुंदर।
    ममता और करूणा से ओत-प्रोत हृदय तक उतरता सरस सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति! और उतने ही खूबसूरत भाव

    जवाब देंहटाएं

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