मातृप्रेम
माँ के आँचल में जो
सुख मन पावें,
सो
सुख जग में और कहीं मिल न पावें ।
हर
कोई है जाने माँ ममता कि मुरत होवें,
पर
कोई-कोई ही ध्यावें परब्रह्म कि वही सुरत होवें ।
कितनी
ममता कितनी करूणा मन को भावें,
देख
विपत्ति में गैरन को भी
मनसुधा
आपन पुत बतावें ।
रोम
– रोम वस सोच इक बात शिहर जावें,
साथ
शीतल पुवाई लाल तक उसके कोई दु:ख न लावें ।
दिल
ही दिल में फुट फुटकर ममता है रोवें,
देख
असहाय लाल को आपन खड़ी ढाल वो बन जावें ।
जग
के नव निर्माण रूप में सर्वोत्म पात्र निभावें,
इसलिए
जग जननी जगमाता मातृ कहलावें ।
देव
– दानव – मानव सृष्टि पर सब इनका अभार बतावें,
सो
हर कण हर क्षण सत् सत् नमनकार करें और गुण गावें ।
--- आतिश
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०६-०१ -२०२२ ) को
'लेखनी नि:सृत मुकुल सवेरे'(चर्चा अंक-४३०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंममता और करूणा से ओत-प्रोत हृदय तक उतरता सरस सृजन।
बेहद सुंदर कृति
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति! और उतने ही खूबसूरत भाव
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
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