दोस्त
वर्षों से साथ था पल भर में
वो दोस्त बदल सा गया ।
बांटी थी जिससे गहराई से कोर तक
दिल के हालात वो गैर सा हो गया ।
वो दोस्त बदल सा गया ।
बांटी थी जिससे गहराई से कोर तक
दिल के हालात वो गैर सा हो गया ।
सादगी शाम तन्हाई गुफ्तगू दिलों की
साथ गिरकर संभलने का सहुर -
मानों सब समेटकर वो साथ ले गया ।
साथ गिरकर संभलने का सहुर -
मानों सब समेटकर वो साथ ले गया ।
अजनवी था तो अच्छा था,
जो गले लगकर गया ,
वो अजनबियों से भी बुरा हो गया ।
जो गले लगकर गया ,
वो अजनबियों से भी बुरा हो गया ।
फिर मिला तो पुछूगां -
घंटों नदी किनारे बैठा करते थे ,
सुनसान महौल को गुलजार किया करते थे ,
जीवन के कठिन सवालों पर मनन भी करते थे ,
कोसा करते थे खुदा और उसकी दुनिया को ,
घर - बाबु जी कि चुभती बातें जिसके बीच आकर
हम भुल जाया करते थे । आखिर वो कौन है ?
जो हम दोस्तों से भी बड़ा दवा हो गया।
घंटों नदी किनारे बैठा करते थे ,
सुनसान महौल को गुलजार किया करते थे ,
जीवन के कठिन सवालों पर मनन भी करते थे ,
कोसा करते थे खुदा और उसकी दुनिया को ,
घर - बाबु जी कि चुभती बातें जिसके बीच आकर
हम भुल जाया करते थे । आखिर वो कौन है ?
जो हम दोस्तों से भी बड़ा दवा हो गया।
हाँ ! वो सब भुल गया ।
कुछ युं हाथ फेरकर गया दिल के फर्श पर
मानों यादों कि हर छोटी-बड़ी लकिरों को
आहिस्ता - आहिस्ता ज़ेहन से
मानों यादों कि हर छोटी-बड़ी लकिरों को
आहिस्ता - आहिस्ता ज़ेहन से
वो मिटा सा गया।
वर्षो से साथ था पल भर में वो दोस्त
कुछ युं बदल सा गया ।
कुछ युं बदल सा गया ।
--- आतिश
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