सोमवार, 27 दिसंबर 2021

दोस्त

 


दोस्त

वर्षों से साथ था पल भर में 
वो दोस्त बदल सा गया । 
बांटी थी जिससे गहराई से कोर तक 
दिल के हालात वो गैर सा हो गया ।

सादगी शाम तन्हाई गुफ्तगू दिलों की 
साथ गिरकर संभलने का सहुर - 
मानों सब समेटकर वो साथ ले गया ।

अजनवी था तो अच्छा था, 
जो गले लगकर गया , 
वो अजनबियों से भी बुरा हो गया ।

फिर मिला तो पुछूगां - 
घंटों नदी किनारे बैठा करते थे , 
सुनसान महौल को गुलजार किया करते थे , 
जीवन के कठिन सवालों पर मनन भी करते थे , 
कोसा करते थे खुदा और उसकी दुनिया को , 
घर - बाबु जी कि चुभती बातें जिसके बीच आकर 
हम भुल जाया करते थे । आखिर वो कौन है ? 
जो हम दोस्तों से भी बड़ा दवा हो गया।

हाँ ! वो सब भुल गया ।

कुछ युं हाथ फेरकर गया दिल के फर्श पर 
मानों यादों कि हर छोटी-बड़ी लकिरों को 
आहिस्ता - आहिस्ता ज़ेहन से 
वो मिटा सा गया।

वर्षो से साथ था पल भर में वो दोस्त 
कुछ युं बदल सा गया ।

--- आतिश


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