तन्हां छोड़ जाती है वो.....
ना जाने किस – किस रंग में
दिल को छल जाती है वो ।
कभी ख्वावों कि तितली बन तो
कभी ख्यालों में मिल जाती है वो ।
तन्हाई में दर्द बनकर
आंधियों सी गुजर जाती है वो ।
कभी गहरे झील में डुबते किनारों को
तिनके सी नजर आती है वो ।
शिथिल मन और भी गहरा हो जाता है
जब सपनों में भी किसी और
का रूख कर जाती है वो ।
मायुस पलके झुक जाती है
दिल फुट – फुटकर रोने लगता है
जब सवालों के गहरें अंधेरें में
तन्हां मुझें छोड़ जाती है वो ।
--- आतिश
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-१२ -२०२१) को
'रिश्तों के बन्धन'(चर्चा अंक -४२८९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीय ,
हटाएंअपनी चर्चा में शामिल करने के लिये आभार एवं धन्यवाद !
वाह बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंससमान धन्यवाद!
हटाएंशिथिल मन और भी गहरा हो जाता है
जवाब देंहटाएंजब सपनों में भी किसी और
का रूख कर जाती है वो ।
मायुस पलके झुक जाती है
दिल फुट – फुटकर रोने लगता है
जब सवालों के गहरें अंधेरें में
तन्हां मुझें छोड़ जाती है वो ।
भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही मार्मिक व हृदयस्पर्शि रचना!
एक एक पंक्ति दर्द को बयां कर रही है!
शब्दों का चयन बहुत ही खूबसूरत और शानदार है!
बहुत - बहुत धन्यवाद !
हटाएंकभी गहरे झील में डुबते किनारों को
जवाब देंहटाएंतिनके सी नजर आती है वो
तन्हा छोड़ जाती है वो
बहुत ही सुन्दर...
माननीय मैम,
हटाएंआपकी प्रतिकिया मेरे लिए ऊर्जा तुल्य है ।
ह्दय से धन्यवाद !
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय ,
जवाब देंहटाएंअपना स्नेह एवं सहयोग बनाएं रखें ।
धन्यवाद !