सोमवार, 6 दिसंबर 2021

सबक़

 

सबक़

सबक़ सिखा था जो गिरकर संभलने का 

आज काम आ गया 

 

जिंदगी के चंद हिस्‍सों पर  

छिटें पड़ी उम्‍मीदों कि,

जलते दिल को आराम आ गया।  

 

बावजुद इसके कि कोई मुझे जानता नहीं, 

कोई चिट्टी वेनाम मेरे नाम आ गया ।

 

तकलीफों कि सुबह हुई ही थी

कि बदलियां  फिर घिरने लगी,

कोई वुत जो छिपा था ब से अंधेंरे में

आज सरेआम आ गया।

 

कोई पुछता है नाम मेरा कोई पता- शहर-

है महफिल या पागलों की भिड़

जहां बन मैं इन्‍सान आ गया ।

--- आतिश

9 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (07-12-2021 ) को 'आया ओमीक्रोन का, चर्चा में अब नाम' (चर्चा अंक 4271) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. आदरणीय महोदय ,
      आपका तहे दिल से आभार ।
      मेरी रचना को अपने आज के अंक में शामिल करने लिए।
      बहुत - बहुत धन्यवाद!

      हटाएं
  2. कोई पुछता है नाम मेरा कोई पता- शहर-
    है महफिल या पागलों की भिड़
    जहां बन मैं इन्‍सान आ गया ।
    वाह बहुत ही उम्दा व शानदार ,दमदार ,लाजवाब...

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. आदरणीय मैम,
      आपकी 'वाह !' मेरी लिए ऊर्जा तुल्य है।
      ससम्मान धन्यवाद !

      हटाएं
  4. वाह आत‍िश जी, जिंदगी के चंद हिस्‍सों पर

    छिटें पड़ी उम्‍मीदों कि,

    जलते दिल को आराम आ गया। बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मान्यवर,
      आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद !

      हटाएं
  5. बावजुद इसके कि कोई मुझे जानता नहीं,

    कोई चिट्टी वेनाम मेरे नाम आ गया ।
    बहुत खुब...

    जवाब देंहटाएं

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