बुधवार, 8 दिसंबर 2021

पलकों से दुनिया कि टोह...।

 



पलकों से दुनिया कि टोह...।

पलकों से दुनिया कि टोह लिये

फिरता हूँ मैं, पर आवाज दुनिया

कि नहीं, अपने मन कि

सुनता हूँ मैं।

 

कदमों के सहारे तय नहीं कि जा सकती

 राहें इस जहां की,

सो जिन्दगी के चुल्हें में

कोयले की तरह जलता हूँ मैं।

 

कोई खुदा क्‍या हमसे छीन ले जाऐगा,

चंद साँसे ही तो है मेरी अपनी

जिसे रोज निलाम करता हूँ मैं।

 

कोई पुछे कौन क्‍या हूँ मैं,

वेअदब वेआवरू बेफ़िक्र वेहिसाब

खुद अपनी पहचान बताता हूँ मैं।

--- आतिश

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९-१२ -२०२१) को
    'सादर श्रद्धांजलि!'(चर्चा अंक-४२७३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय नमस्ते,
      मेरी कोशिश को अपनी चर्चा में जगह देने के लिए
      सह हृदय धन्यवाद !

      हटाएं
  2. वाह!!!
    पलकों से दुनिया कि टोह लिये

    फिरता हूँ मैं, पर आवाज दुनिया

    कि नहीं, अपने मन कि

    सुनता हूँ मैं।
    सुनो सबकी करो मन की
    बहुत ही सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय🙏🙏🙏 ,
      मैंम आपकी "वहां " मेरी लिए ऊर्जा तुल्य है।
      ससम्मान धन्यवाद !

      हटाएं
  3. कदमों के सहारे तय नहीं कि जा सकती

    राहें इस जहां की,

    सो जिन्दगी के चुल्हें में

    कोयले की तरह जलता हूँ मैं।

    वाह! बहुत खुब.. सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय ,
      आपने मेरी पक्तियों को सराहा ।
      हदय से धन्यवाद!

      हटाएं

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