बुधवार, 24 नवंबर 2021

गमों का सिर्फ एक ही रंग...

 

क्‍यों अँधेरे से इतनी मोहब्‍बत और

उजाले से दोस्‍ती भी गवारा नहीं अब ।

 

 क्‍या ढुढ़ता हूँ मै अँधेरें में मालूम नहीं ,

क्‍यों रोशनी आँखों के रस्‍ते दिल में

उतड़ती ज़हर सी लगती है अब ।

 

विरानियों में बैठ खुद से बातें करता हूँ मैं

क्‍यों तन्‍हाईयों कि गोद में ,

सुकून कि आहे दिल भरता है अब ।

 

क्‍यों सन्‍नाटें को छोड़ जब

गुजरता हूँ भीड़ से कई टुकड़े हो जाते है

मेरे तन-मन के अब


खुशीयों से लवरेज हर शाम सतरंगी होकर भी    

क्‍यों रंगहीन नज़र आता है अब ।              

 

क्‍यों गमों का सिर्फ एक ही रंग

होता है दर्द का ,

जो यु ही मिल जाता है अब ।

 

--- आतिश

 

15 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२५-११-२०२१) को
    'ज़िंदगी का सफ़र'(चर्चा अंक-४२५९ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय ,
      बहुत बहुत धन्यवाद !
      मेरी रचना को अपने मंच पर साझा करने के लिए । आभार !

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 25 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मान्यवर ,
      मेरी रचना को अपने मंच पर सम्मानित करने के लिए सहदय धन्यवाद !

      हटाएं
  3. ग़म तो हर जगह मिल जाते हैं पर ख़ुशी की क़ीमत चुकानी पड़ती है, बात तो तब है जब ख़ुशी बेवजह मिले और ग़म क़रीब आने से डरें

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय ,
    आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए ऊर्जा तुल्य है यूं ही अपना आभार देती रहें ।
    हृदय से धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. मित्र, क्या लिखूँ आपकी प्रशंसा में। अद्भूत है यह आपकी रचना। मन और हृदय के अंतिम कोने को छू चुकी है यह रचना। इस रचना की पहली पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति तक पाठक को बांधे रख रही है।

    "...
    विरानियों में बैठ खुद से बातें करता हूँ मैं
    क्‍यों तन्‍हाईयों कि गोद में ,
    सुकून कि आहे दिल भरता है अब ।

    खुशीयों से लवरेज हर शाम सतरंगी होकर भी    
    क्‍यों रंगहीन नज़र आता है अब ।    
    ..."

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मित्र ,
      आपकी प्रतिक्रिया से मैं अति उत्साहित हूँ।
      कृपया अपना स्नेह और सहयोग बनाऐ रखें ।
      धन्यवाद !

      हटाएं
  6. सचमुच कभी कभी मन ऐसी विसंगतियों में फंसकर व्यथित होता है।
    पर सदा स्वयं के लिए एक सकारात्मक ऊर्जा का झरोखा खोले रखिये।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय ,
    मेरी कोशिश को सराहने के लिए सहदय धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  8. क्‍यों गमों का सिर्फ एक ही रंग

    होता है दर्द का ,

    जो यु ही मिल जाता है अब ।
    दुखों की इम्तिहा से निकलना आसान होता है तब जब मन खुद से ऐसे सवाल करता है...
    बहुत सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय मैम ,
      आपकी प्रतिक्रिया मेरी लेखनी के लिए ऊर्जा तुल्य है ।
      धन्यवाद !

      हटाएं
  9. क्‍या ढुढ़ता हूँ मै अँधेरें में मालूम नहीं ,
    क्‍यों रोशनी आँखों के रस्‍ते दिल में
    उतड़ती ज़हर सी लगती है अब ।
    पता नहीं सर पर मुझे भी अंधेरों से बहुत प्यार है और वो भी बचपन से! अंधेरे में शुकून मिलता है एकदम शान्ति होती है! और हम खुद को देखते नहीं बल्कि महसूस करते हैं!
    एक एक पंक्ति बहुत कुछ कह रही है और हृदय तल को छू रही है
    बहुत ही उम्दा

    जवाब देंहटाएं

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