हवस कि तरक्की.
एक जमाना था तब पतियों कि
किस्मत फुलों से अच्छी थी
लोगों कि गंदी नजर तब पतियों पर नहीं
फुलों पर रहती थी ।
अब पतियां भी डरी-सहमी सी दिखती है
क्योंकि गंदी नजर अब गिद्ध हो चुकी है
उसे बुढ़ी अम्मा भी मेनका रंभा सी लगती है ।
हवस इतनी थी तो अच्छी थी
तब बहन-बेटी सहती थी अब ऐसा लगता है
हवस ने पी० एच० डी० कर ली है
उसे संग बहन-बेटी दादी-नानी भी अवसर सी लगती है ।
हद तो तब होती है जब इज्जत के डकैतों को
फन उठाये करैतों को आँगन में खेलती
नन्हीं बिटिया संग पालने में झुलती
नवजात भी भोग की वस्तु सी दिखती है ।
--- आतिश
सच को बयां करती बहुत ही बेहतरीन रचना.....
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द सत्य कहा है आपने!
धन्यवाद !
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जवाब देंहटाएंहद तो तब होती है जब इज्जत के डकैतों को
जवाब देंहटाएंफन उठाये करैतों को आँगन में खेलती
नन्हीं बिटिया संग पालने में झुलती
नवजात भी भोग की वस्तु सी दिखती है ।
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इस सभ्य समाज के कुछ दरिंदों को आईना दिखती पंक्तियाँ... बहुत सुंदर रचना