शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

वो गवां हो मेरी...


 

 

वो गवां हो मेरी...

 वस उन्‍हें इतनी सी परवाह हो मेरी

कचहरी लगें दिवानों की वो गवां हो मेरी ।

 

हो वेनकाव़ भवड़े तमाम गुलशन में ,

सैकड़ों में एक अकेली वो हमराज हो मेरी ।

 

वस एक उसका हो जाऊं हथेली पर खिंची

सीधी किस्‍मत वाली वो लकिर हो मेरी ।

 

मैं जहां भी रहूँ हो मर्जी उसकी

दस्‍तक देती रहें बन वो याद हो मेरी ।

 

जब सांसें थम जाऐ धड़कनें खो जाऐ, कुछ यू

लिपटे वदन से मेरे कि वो कफ़न हो मेरी ।

 

--- आतिश

 

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
    'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. वस एक उसका हो जाऊं हथेली पर खिंची

    सीधी किस्‍मत वाली वो लकिर हो मेरी ।


    उम्दा हो सृजन...

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं

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