शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

क्‍योंकि जिन्‍दगी अभी अधुरी हैं।


  

 

क्‍योंकि जिन्‍दगी अभी अधुरी हैं।

 

आस की डगर पर चलना अभी जरुरी हैं

क्‍योंकि जिन्‍दगी अभी अधुरी हैं।

 

कुछ ख्‍वाव हैं बाकी आंखों में

कुछ कसमें करनी पुरी हैं

क्‍योंकि जिन्‍दगी अभी अधुरी है।

 

सफ़र में हूँ मंजिल से थोड़ी दूरी हैं,

युं तो खुशीयां है लेकिन उनकी

सत़ह अभी खुरदुरी हैं

क्‍योंकि जिन्‍दगी अभी अधुरी है।

 

अंधेरें में ख़ामोश होती है

जब दुनिया सारी,

धड़कनों का चलना मजबुरी हैं

क्‍योंकि जिन्दगी अभी अधुरी है।

--- आतिश

                                               


3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा प्रयास... लिखते रहें और मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  2. माना की अंधेरा घना है,
    पर चराग़ जलाना कहाँ मना है!
    बहुत ही उम्दा रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह क्या बात है आपने बहुत उम्दा लिखा है...बधाई

    जवाब देंहटाएं

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