ख़ुदा और दुविधा
जरा बता मुझे...
मेरे दिल टुटने कि वजह क्या है..
जाने – अनजाने कर बैठा
जो गुनाह उसकी सजा क्या है।
तु दर्द बांट रहा है ऐसे
जैसे मोतीयों से सनी थाल फिरा रहा है कोई,
सब कुछ वैसा ही है कुछ बदला तो नहीं,
सोचता हूँ कहीं तु भी दो मुखों वाला तो नहीं।
जरा बता मुझे..।
सब जानकर भी तेरे मर्जी के आगे
क्यों झुक रहे है लोग।
क्यों न चाहकर भी तेरी उम्मीद से ज्यादा
तुझे ढुंढ़ रहे है लोग।
जरा बता मुझे..।
कहते है तु पत्थर में भी दिखता है,
फिर क्यों चौक चौराहों पर मिट्टी के भाव तु बिकता है।
तु कहता है तु सबके दिल में वसता है,
फिर क्यों इन्सान दुआ आशिष के वास्ते
तेरी मंदिर मस्जिद को तकता है।
जरा बता मुझे..।
तु क्या है कौन है, तेरी हक्कित क्या है।--- आतिश
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०२-१०-२०२१) को
'रेत के रिश्ते' (चर्चा अंक-४२०५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुखद पल । अपना सहयोग यूं ही बनायें रखें।
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सह हृदय धन्यवाद !
हटाएंबहुत ही तार्किक और उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रश्न बहुत बार उठता है मन में।
जवाब देंहटाएंसब उसी का ताना बाना है तो फिर ये हड़कंप सी क्यों मचा रखी है।
चिंतन परक सृजन।
आदरणीय ,
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद !