बुधवार, 29 सितंबर 2021

ख़ुदा और दुविधा ..

 


ख़ुदा और दुविधा

जरा बता मुझे...

मेरे दिल टुटने कि वजह क्‍या है..

जाने – अनजाने कर बैठा

जो गुनाह उसकी सजा क्‍या है।

                                                                                                 

तु दर्द बांट रहा है ऐसे                    

जैसे मोतीयों से सनी थाल फिरा रहा है कोई,  

सब कुछ वैसा ही है कुछ बदला तो नहीं,

सोचता हूँ कहीं तु भी दो मुखों वाला तो नहीं।

 

जरा बता मुझे..।

सब जानकर भी तेरे मर्जी के आगे

क्‍यों झुक रहे है लोग।

क्‍यों न चाहकर भी तेरी उम्‍मीद से ज्‍यादा

तुझे ढुंढ़ रहे है लोग।

 

जरा बता मुझे..।

कहते है तु पत्‍थर में भी दिखता है 

फिर क्‍यों चौक चौराहों पर मिट्टी के भाव तु बिकता है।

तु कहता है तु सबके दिल में वसता है,  

फिर क्‍यों इन्‍सान दुआ आशिष के वास्‍ते

तेरी मंदिर मस्जिद को तकता है।

 

जरा बता मुझे..।

तु क्‍या है कौन है, तेरी हक्कित क्या है।

--- आतिश  

                        

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०२-१०-२०२१) को
    'रेत के रिश्ते' (चर्चा अंक-४२०५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत धन्यवाद !
    सुखद पल । अपना सहयोग यूं ही बनायें रखें।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही तार्किक और उम्दा रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक प्रश्न बहुत बार उठता है मन में।
    सब उसी का ताना बाना है तो फिर ये हड़कंप सी क्यों मचा रखी है।
    चिंतन परक सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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