“Jobless Youth Commits Suicide”
This is the title. A common News today.
“A 28 years old man committed suicide by hanging himself
from from a ceiling fan in his room.”
“उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा हैं---
माँ रात कि सब्जी बहुत अच्छी बनाई थी
और
मैंने एक रोटी अधिक खाया था ।“
उस एक अधिक रोटी का बोझ वो रात भर भी संभाल न सका । क्योंकि वो बेरोजगार था । उसकी माँ एक शॉप में काम करती है और पिता देहारी, उसकी एक छोटी बहन भी है जो मिडिल स्कुल में पढती है।
वो शहर
में रहकर नौकरी के लिए एग्जाम कि तैयारी करता था दो दिन पहले वो अपने गांव आया था
। ऐसे बहुत से युवा घर गांव छोड़कर शहर में पड़े है इनमें ऐसे भी है जिनकी घर की
स्थिति दयनीय है । हॉस्टल और लॉज के छोटे-छोटे कमरे, न खाने-पीने की
सुद न सोने का ठिकाना । फिर भी
प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी में लगे हुए है वस घिस रहे है खुद को और आजमा रहें
भाग्य को । ऐसा नहीं कि इनकी तैयारी में कुछ कमी है दुरभाग्य यह है कि यहां सीटों
कि संख्या बहुत सीमित है और उसे पाने वालों कि तादाद लाखों में हैं । केन्द्र से
लेकर तमाम सुवों कि सरकार चुनाव के वक्त लाखों करोड़ो नौकरीयां देने का वादा करती
है और सरकार बनने के बाद सारे वादें जुमलें बनकर रहें जाते है ।
बैंक-
एस.एस.सी – रेलवे ये तीन तंत्र जो सरकारी नौकरी पाने का जरीया हैं जिनमें लगभग 90
प्रतिशत युवा अपनी किस्मत आजमाते रहते हैं । स्थिति ऐसी है कि युपी बिहार के बच्चे
दशवी की परीक्षा परीणाम आने के तुरंत बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुट
जाते है मानों दुध मुँहे बच्चे को खीर खिलौनी तक का ज्ञान हो गया हो । खीर
खिलौनी युपी बिहार के कुछ गांव में रिवाज है जिसमें शादी के अगले दिन दुल्हा-दुल्हन
एक – दुसरे को खीर खिलाते है ।
रिक्तियां वैसे ही सीमित थी, पिछले कुछ वर्षो में लगातार साल दर साल रिक्तियों की संख्या घटती ही जा रही है इसका मुल कारण है तेजी से होता निजीकरण । रेलवे जिसे देश का सवसे बड़ा नियोक्ता कहा जाता है इसकी भी स्थिति रिक्तियों के मामले में ठिक नहीं है कारण सरकार कि उदासीनता और विकास, आधुनीकरण एवं सौदंर्यकरण के नाम पर देश के कई स्टेशनों को पार्ट-पार्ट करके टेंडर अर्थात् निजी हाथों में सौप दिया जाना है । पढ़े-लिखें बेरोजगारों कि इतनी बड़ी भीड़ जो
{जब सारी दुनिया विरान सी लगती है, इक मौत आसान सी
लगती है
ढुढंते-ढुढंते एक
मुकक्मल जिन्दगी, खाली होती है जब उम्मीदों कि झोली
फिर जीने कि हर
वजह नादान सी लगती है ।}
“गैरों की महफिल
में मौज बेईमानी सी लगती है,
अब रोजगार से महरूम जिन्दगी हरामी सी लगती है ।“
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आतिश
गैरों की महफिल में मौज बेईमानी सी लगती है,
जवाब देंहटाएंअब रोजगार से महरूम जिन्दगी हरामी सी लगती है ।“
बहुत ही चिंतनीय विषय! पता नहीं कितने युवा बेरोजगार होने के कारण आत्महत्या कर लेते हैं पर इसकी सुध न तो सरकार लेती है और न ही मीडिया वाले इस मुद्दे को ज्यादा तव्वजो देते हैं! यहाँ तक परीक्षा कराने के लिए एक अलग से मुहीम चलानी पड़ रही है प्रतिभागी छात्रों को! जो कि अत्यंत चिंतनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है!
सार्थक लेख सर!
धन्यवाद!
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"उफ़ ये बेरोजागी "