रविवार, 8 अगस्त 2021

वेवश आवाज

 



वेवश आवाज


रंग-बिरंगी ये दुनिया आँसुओं के बुंदों में

लिपटी शवनम कि गुच्‍छों सी दिखती है।

 

अरमानों के झूले में झुलती वेहोश जिन्‍दगी

कई सुरतों में यहाँ बिकती है।

 

पुकारता तो कोई धुतकारता

वेहया तो कोई बदचलन कहता मुझें

क्‍यों रुह मेरी हर जख्‍म को सहती है।

 

साँसों कि कर्ज में डुबी समाज में जीति

लाचार जिन्‍दगी अब बोझील सी लगती है।

 

कहते हैं सब किस्‍मत कि बातें है

लिखा क्‍यों ऐसी किस्‍मत मेरी

खुद़ा गॉड ईश्‍वर अल्‍ला सब

अब वेईमानी सी लगती हैं।

 

रंग-बिरंगी ये दुनिया आँसुओं के बुंदों में

लिपटी शवनम कि गुच्‍छों सी दिखती है।

--- आतिश 

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