गुरुवार, 26 अगस्त 2021

कफ़न इश्‍क़ का...

 




कफ़न का इश्‍क़ 

देख उसकी रूपहली अदा

सर पर बांधा कफ़न इश्‍क़ का

चल पड़ा अपने इश्‍क़ को पाने ।

 

कहीं फुल कहीं शुल सही

कहीं धुप कहीं छाव मिला फिर भी वह

चलता चला अपने प्रीत को पाने ।

 

कहीं आग के शोले कहीं सावन कि बुंद गिरी

चुम-चुम विरहा के हरेक सितम को

चलता चला अपने मीत को पाने ।

 

भेद-भाव और रीति धर्म भुला के सारे जमाने की शर्म

तोड़ के अपने रिश्‍तें तमाम

चलता चला धुन में अपने जीत को पाने ।

 

ढुंढा हर गली मुहल्‍ले हर गमगीन राहों पर

न जाने वो कब कहाँ मिलेगी गिरता संभलता वह

चलता चला अपने उम्‍मीद को पाने ।

---

आतिश

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना । शब्दावली पर ध्यान दें , बहुत शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय मैम,
    धन्यवाद ! अपना सहयोग एवं सुझाव बनायें रखें ।

    जवाब देंहटाएं
  3. कहीं फुल कहीं शुल सही
    फुल की जगह फूल और शुल की जगह शूल होना चाहिए गलती से फुल और शुल लिख दिया है आपने! पर रचना बहुत ही अच्छी है!

    जवाब देंहटाएं

Featured Post

Dear ज़िन्दगी !

  Dear ज़िन्दगी ! किसी ने कहा ... नींद आ रही है कल बात करते है न ... मानों सदियां गुज़र गई ... यादें आईं पर वो कल अब तक न आई / / तो...