राख़ी
सावन संग आई राख़ी
संग मेघ मलहार लाई राख़ी ।
वर्ष भर जो मिल न सकी
संग राख़ी आई बहना ।
लाड़-दुलार खुशीयों का सारा संसार
एक सुत में गुथ ले आई बहना ।
तिलक आरती मिठाई संग
उपहारों कि पोटरी भी लाई बहना ।
बड़ी सहज समझदार मेरी बहना,
सजती-सजाती राखी कलाई पर
शिकायतों वाली एक गांठ भी लगाती बहना ।
तु सुधर जा या सुधार दूं तुझे,
बैठे बिठायें पल भर में
माँ कि माँ बन जाती बहना ।
फिर बारी आती थाली की,
और मेरी पॉकेट खाली की ।
अकुलाता मन शांत हो जाता जब
आशा और उम्मीद की थपथपी लगाती मेरी बहना ।
---आतिश
बहनें ऐसी ही होती हैं ... माँ का रूप होती हैं ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है ...
धन्यवाद! मान्यवर,
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