बुधवार, 18 अगस्त 2021

उम्‍मीदों कि नदी...

 

उम्‍मीदों कि नदी...

 


धुंधली मंजिल रास्‍ते है काले

इस गहरी अंधेरी रात के कई किनारे है ।

समंदर से भी गहरी होती है

उम्‍मीदों कि नदी.... क्‍या सुना है कभी कि

दिन के उजालें में उतरती है कोई परी ।

बदलते वक्‍त की धार

ख्‍वावों को भी तेज कर रही है ।

कड़ीया कुछ जुड़ती तो

कुछ टुटकर बिखड़ रही है ।

दिल कई आयामों में बंट रहा है

जैसे एक के बाद एक लैहर 

किनारे से टकरा रही है

वेपरवाह रिश्‍तें वेशर्व चेहरे

मानों कुछ आता हाथों से छुट रहा है ।

--- आतिश

1 टिप्पणी:

  1. सर आप बहुत अच्छा लिखते हैं पर समझ नहीं आता कि क्यों आपकी पोस्ट पर लोग प्रतिक्रिया नहीं देते हैं!

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