शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

मालुम नहीं ...




 

मालुम नहीं …

वो आ रही है फिर वही उलझनों

उलफत के साथ कोई सहमा सा है

मैं हुँ या दिल मेरा मालुम नहीं ।

 

इतफा़कन धड़कनें फिर सजी है

इक राग इक संगीत के साथ

सिर्फ हरकते है या जज्‍वात मालुम नहीं ।

 

दुरीया वरकरार थी तो अच्‍छा था

खुशवू उड़ी महक उठा है स्‍वास कैसा है

ये पल ये रात मालुम नहीं ।

 

मौसम फिर वही है या रंग है बादल का

जो बैहक जाऐगी हवाओं के साथ

कौन समझाये ये बात मालुम नहीं ।

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आतिश

 

 

 

 

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