रविवार, 27 जून 2021

मेरी डायरी से... ( 01 june 2021) 01

 


      मेरे घर के सामने मंदिर में पीपल का एक पेड़ है। जब से होश संभाला उसे बढ़ते देखा। विडंवना यह है कि जितना उसको बढ़ते देखा उस ज्‍यादा उसे कटते देखा।

मैंने पढ़ा था पीपल और तुलसी 24 घंटे ऑक्‍सीजन देती है। आज जब पुरा देश ऑक्‍सीजन कि किल्‍लत झेल रहा था तो मन में थोड़ी संतुष्टि थी। पिछले दिनों मैंने अखबार में पढ़ा कि ऑक्‍सीजन के लिए पेड़ - पौधें कितने आवश्‍यक है विशेष रूप से '' पीपल, वड़गद, नीम और नन्‍हा पौधा तुलसी। ये सभी वातावरण से कार्बन- डाइ- ऑक्साइड ''Co 2 '' सोखते है --- नीम 75%, वड़गद 80%, और पीपल - तुलसी 100% अपनी भुमिका इसमें निभाते है। पीपल और तुलसी इस कार्य में 24 घंटे लगे रहते है।

      मैं और मेरा परिवार कितना खुशकिस्‍मत है - घर के आगे पीपल और ठीक घर कि पीछे वड़गद का पेड़ है। और घर में तुलसी तो है ही । ये दो वृक्ष जहां होती वहां की जमीन भी सख्‍त होती है कारण इनकी फैली जड़े मिट्टी को मजबुती से पकड़े रहती है जिससे जमीन धसनें या भुकम्‍प जैसी घटनाओं से क्षति की आशंका कम हो जाती है। धार्मिक दृष्टि से भी ये पुजनीय है लेकिन इनकी विशालता के कारण इन्‍हें इन्‍सानों कि रूखेपन का सामना करना पड़ता है।

      अब चारों तरफ से ऊंचे मकान बन गये है मानों इसे सीमित रहने को कोई अनुदेश पास कर दिया गया हो । विवशता अपनी भी कुछ ऐसी ही थी जब घर अपना भी बना तो डालीयाँ कुछ पत्तें हमनें भी काटे और नोचे थे। दु:ख हुआ और होता भी है जब कोई नन्‍हा पत्ता तोड़ता हूँ तो मन में एक ख्‍याल जरूर आता है - ''ये भी बड़ा होगा बुढ़ा होगा, इसका भी तो जीवन है ये भी तो सजीव है।'' लेकिन इंसानी फितरत फिर वही दोहराता हूँ और फिर दु:खी होता हूँ। हर घर में तुलसी के पौधें को बड़े शिद्त से लगाया और सहेजा जाता है किन्‍तु पीपल को न कोई लगाता है न सहेजता है, या फिर सहेजना चाहता ही नहीं । क्‍या करें हम मजबुर जो है किन्‍तु जो वर्षों से खड़ा है उसे खड़ा तो रख सकते हैं ।

      मंदिर लोग जाते है हर शनिवार को तरह - तरह कि मनोकामना लिए पीपल के जड़ में पानी डालते है कहते है ऐसा करने से विशेष रूप से रोजी - रोजगार संबंधी समस्‍याऐं निपट जाती है । कुछ ऐसे ही विचार और परेशानी संभालें मैं भी हर शनिवार को जल डालनें जाता हूँ , पर अब मेरे ख्‍याल बदले रहें हैं अबकी बार जब मैं जाऊगां तो मेरी कोशिश रहेगी कि अपनी मनोकामना को पीछे कर इसकी भौतिक विशेषता और उपयोगिता को मन में रखकर जल डालुगां। वैसे भी इसके परोपकार के बदले एक लोटा पाली सप्‍त्ताह में एक बार कुछ ज्‍यादा तो नहीं । मेरी कोशिश रहेगी कि शनिवार को यदि मैं नहीं कर पाया तो सप्‍त्ताह के किसी और दिन जरूर करूगां ।

          --- आतिश

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