यादें ...
यादें ! कुछ हक्कित
कुछ कलपनाऐं –
जिन्दगी चाहें
जितनी भी पुरानी हो जाऐं
ये हमेशा नई सी रहती
है।
यादें ! धुल में
लिपटी उस आकृति कि तरह है
जो वक्त के साथ और
अधिक
किमती होती जाती है।
यादें ! जिसके पहलु
से खुवसुरत लम्हों को
चुन – चुनकर उदास
पड़े
हम अपने आज को सजाते
हैं।
यादें ! इक राह इक
डग़र है
जिसपर चलकर जिन्दगी
के भीड़-भाड़ में
खोयें हम खुद ढुढं
पाते हैं।
--- आतिश
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