मंगलवार, 22 जून 2021

ख़त है पर शब्‍द नहीं...

 

ख़त है पर शब्‍द नहीं

ख़त है पर शब्‍द नहीं,

अक्‍स है पर दीदार नहीं।

 

तेरा घर गली तेरी उम्‍मीद है

वस एक तु तेरा प्‍यार नहीं।

 

कभी एक पल में अर्सा गुजर जाता है

और इंतजार का एक पल नहीं।

 

झुलस गई आँखें राहों में पड़े-पड़े

पर तेरे आने का कोई इश्‍तिहार नहीं।

 

सुबह हुई है मैटमैली रौशनी में लिपटी हुई,

कुछ शुरख है दिल के गिर्द

पर धड़कनों से कोई सरोकार नहीं।

 

आज आया हूँ कुछ सोच कर

तु मुकर जायें, मैं लौट जांऊ,

तेरी वेरुखी मेरी मोहब्‍बत से ऐसा कोई इकरार नहीं।

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आतिश 

                     

                                                          

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