शुक्रवार, 18 जून 2021

कशमोकश रातों की...


कशमोकश रातों की.....

दश्‍तक दे रही है नींदे पलकों पर ,

मगर सोना चाहता है कौन।

 

पुलिंदे बंध चुके है ख्‍वावों

के रंगीन शहर जाने को

मगर ढोंना चाहता है कौन।

 

गहरी रात,  संभावनाऐं है

आंधियों की,  और जलने को

वेकरार है जुगनूऐं भी। 

 

करवट ले रहा है कोई,  मैं

नहीं भीतर मेरे कब से थी

कोई कश्‍ती सोई।

 

कोई तिनंका पलकों के बीच

टीका दूं,  कटनें दे वक्‍त को आँखों

में कुछ ऐसा उनसे कैह दूँ ।

 

संभलता नहीं वरना रोक ही लेता

क्‍या कंरू मेरे सपने इतने बड़े है

और मेरा कद है इतना छोटा । 

                                                                         --- आतिश 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Featured Post

Feel My Words: Dear ज़िन्दगी !

    Dear ज़िन्दगी !    बहुत दिन हुआ तुझसे बिछड़े हुए ... यार कोई आईंना लाओं, देखना है कितना बदला हूँ मैं ।।   यादों कि किचड़ में रोज उतरता ह...