दुनिया आज चीखता हुआ कोई खण्डर विरान है ,
इक तरफ कसमसाती मौत तो दूसरी ओर शमशान है।
इठलाती गाड़ीया अटखेलिया करती थी जिनपर
वो चटकती खुवसुरत सड़क आज सुनसान है।
शादी - पर्व - त्योहारों में खुशी वेपरवाही और
पावंदीयों के बीच मची इक घमाशान है।
बंदी और वेरोजगारी सगे से लगते है अब
कई खुवसुरत चेहरे देख बानगी इनके रिश्तें से परेशान है।
लोग जिस दर से कतराते थे जिसकी आहटभर
से घवराते थे आज वहां खड़ी इक लंबी लाइन है।
रेडियो - टीवी - उद्घोषों में मास्क -
सैनिटाइजर - दो गज दुरी की सलाह अब आम है।
एक ग्रह जो सब पर भारी जिसके आगे
सारी दुनिया बेचारी ''कोविड'' जिसका नाम है।
आतिश
'' जिन तरख्तों को गुमान था बड़ेपन का , वो भी सहमें हैंं
आज मौसम की तब्दीलियों से ,क्योंकि हवा कि जरा सी वेरूखी
उन्हें उखाड़ देती है जमीन से ...। '' --- आतिश
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