Dear ज़िन्दगी !
घर बदला शहर बदलातुम कहां खो गई ,तेरी बातें तेरा मुस्कूरानातेरा शर्माना बदलातू बिलकुल नई हो गयी / /कल सफ़र में थाआज सफ़र से उतरा हूँ ,कल दूरीयाँ पूछती थी मुझसेआज दूरीयों से पुछता हूँवेशर्म तू कहां रैह गयी / /मुझे याद है ...उबड़ खाबड़ रास्तों कि अटखेलियां ,कैसे भुल जाऊँ ...मामुली से कागज़ पर उखेड़ीविकल्पों वाली ... वो पहेलियां / /जब गुजरता हूँ मैं तंग गलियों से ...घेर पुछती है यादों कि टोलिया ,कहां छुट गए वो दोस्त - यार औरमुस्काती कानों कि ... वो सुनहरी बालियां / /ऐ ज़िन्दगी ! तू कितना बदल गयी / /
--- आतिश
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभार एवं हृदय से धन्यवाद !
हटाएंआदरणीय आतिश जी, नमस्ते 🙏❗️
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छी रचना लिखी हैं...साधुवाद 🙏कृपया मेरे ब्लॉग पर मेरी रचना "मैं. ययावारी गीत लिखूँ और. बंध - मुक्त हो जाऊं " पढ़ें, वहीँ पर यूट्यूब के दिए गए लिंक पर दृश्यों के संयोजन के साथ देखें और कविता मेरी आवाज़ में सुनें... सादर आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ
महाशय !
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद !
अपना प्रेम एवं सहयोग बनाये रखें ।
आपकी प्रतिक्रिया ऊर्जा तुल्य है ।
सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंऐ ज़िन्दगी ! तू कितना बदल गयी ....
जय श्री कृष्ण जी !
महाशय !
हटाएंधन्यवाद ! राधे ! राधे!
ज़िन्दगी ! तू कितना बदल गयी , सच लिखा आपने सब कुछ ही तो बदल गया पर आज भी बीते लम्हों की यादें साथ है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंतर्मन को स्पर्श करती अभिव्यक्ति।
आदरणीय मैम .
जवाब देंहटाएंससम्मान धन्यवाद ! आपकी प्रतिक्रिया बहुमुल्य है।
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंये तो हर मन की व्यथा है आतिश जी, जो आपके माध्यम से झलक आई कि ''जब गुजरता हूँ मैं तंग गलियों से ...
जवाब देंहटाएंघेर पुछती है यादों कि टोलिया ,
कहां छुट गए वो दोस्त - यार और
मुस्काती कानों कि ... वो सुनहरी बालियां / /'' वाह