बुधवार, 30 नवंबर 2022

Dear ज़िन्दगी ! तू कितना बदल गयी ...




Dear ज़िन्दगी !

घर बदला शहर बदला  
तुम कहां खो गई ,
तेरी बातें तेरा मुस्कूराना 
तेरा शर्माना बदला
तू बिलकुल नई हो गयी / /


कल सफ़र में था
आज सफ़र से उतरा हूँ ,
कल दूरीयाँ पूछती थी मुझसे
आज दूरीयों से पुछता हूँ
वेशर्म तू कहां रैह गयी / /


मुझे याद है ...
उबड़ खाबड़ रास्तों कि अटखेलियां ,
कैसे भुल जाऊँ ...
मामुली से कागज़ पर उखेड़ी 
विकल्पों वाली ... वो पहेलियां / /


ब गुजरता हूँ मैं तंग गलियों से ...
घेर पुछती है यादों कि टोलिया ,
कहां छुट गए वो दोस्त - यार और 
मुस्काती कानों कि ... वो सुनहरी बालियां / /

ऐ ज़िन्दगी ! तू कितना बदल गयी / /


--- आतिश 

10 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय आतिश जी, नमस्ते 🙏❗️
    आपने बहुत अच्छी रचना लिखी हैं...साधुवाद 🙏कृपया मेरे ब्लॉग पर मेरी रचना "मैं. ययावारी गीत लिखूँ और. बंध - मुक्त हो जाऊं " पढ़ें, वहीँ पर यूट्यूब के दिए गए लिंक पर दृश्यों के संयोजन के साथ देखें और कविता मेरी आवाज़ में सुनें... सादर आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. महाशय !
      बहुत बहुत धन्यवाद !
      अपना प्रेम एवं सहयोग बनाये रखें ।
      आपकी प्रतिक्रिया ऊर्जा तुल्य है ।

      हटाएं
  3. सुन्दर अभिव्यक्ति !
    ऐ ज़िन्दगी ! तू कितना बदल गयी ....
    जय श्री कृष्ण जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. ज़िन्दगी ! तू कितना बदल गयी , सच लिखा आपने सब कुछ ही तो बदल गया पर आज भी बीते लम्हों की यादें साथ है।
    बहुत सुंदर अंतर्मन को स्पर्श करती अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय मैम .
    ससम्मान धन्यवाद ! आपकी प्रतिक्रिया बहुमुल्य है।

    जवाब देंहटाएं
  6. ये तो हर मन की व्‍यथा है आतिश जी, जो आपके माध्‍यम से झलक आई कि ''जब गुजरता हूँ मैं तंग गलियों से ...
    घेर पुछती है यादों कि टोलिया ,
    कहां छुट गए वो दोस्त - यार और
    मुस्काती कानों कि ... वो सुनहरी बालियां / /'' वाह

    जवाब देंहटाएं

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