तुम दिखती हो ।
भुला चुका हूँ तुम्हेंअपनी यादों से ,अपने वादों से ।निकालकर फेक चुका हूँ तुम्हेंख्यालों के पन्नों से ,ख़्वाबों के धागों से ।हाँ ! तू अब भी आनाचाहती है रूप बदलकर ,कभी आँखों के कोशो सेआंसु बनकर ।कभी चहकते महौल मेंचेहरे पर उदासी बनकर ।जब भी खड़ा होता हूँ मैंआईनें के सामनेमुझसे पहले प्रतिबिम्ब मेंतुम दिखती हो ।जब कभी पुराने दोस्त -यारों से मिलता हूँउनकी बातों मेंतुम दिखती हो ।तुम बिन अधुरा सा हूँ मैं ,समन्दर से घिरा सुनसानअन्जान अकेला सा हूँ मैं ।कहाँ छुपाऊँ मैं ख़ुदकों ,ओढ़ लूं मिट्टीदफ़न कर दूं मैं ख़ुदकोपर सुकून कहाँवहां भी मुझको ।
सुन! रैह जा यातबीयत से रुखसतहो जा ।रैहम कर मुझ परनासूर मत बनामेरे ज़ख्मों को ।
@ आतिश
रविवार, 7 अगस्त 2022
तुम दिखती हो ।
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वाह।
जवाब देंहटाएंमित्र धन्यवाद् !
हटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसर ! बहुत बहुत धन्यवाद् ! मेरे पोस्ट पर आने के लिए ।
हटाएंआदरणीय मैम,
जवाब देंहटाएंमेरी कोशिश को अपने मंच जगह देने के लिए आभार
एवं धन्यवाद् !
वाह बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंससम्मान धन्यवाद ! मैम ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 09 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मान्यवर !
हटाएंआभार एवं धन्यवाद !
बेहतरीन लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंयह तो नायक पर निर्भर है कि नासूर बने या सूखकर मिट जाए
जवाब देंहटाएंभावाभिव्यक्ति अच्छी लगी
धन्यवाद !
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया मेरे लेखन के लिए ऊर्जा तुल्य है ...
मुहब्बत के साइड इफेक्ट्स खतरनाक लग रहे मुझे तो ।
जवाब देंहटाएंमन के भावों को भावपूर्ण शब्द दिए हैं ।
रुकसत ** रुखसत
रैहम**** रहम
रैह *** रह ।
आंखों के कोशों या कोरों । ये कोशों मुझे नहीं पता ।
आदरणीय मैम .
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद्
अपना स्नेह एवं सहयोग यूं ही बनाऐं रखें । आभार!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआदरणीय ,
हटाएंधन्यवाद ! मेरे पोस्ट पर आने के लिए।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद Bharti जी
हटाएंबहुत गहरे भाव से निकली कविता . कहीं तू और कहीं तुम सम्बोधन इस तीव्रता को व्यक्त कर रहा है , जो दोष होकर भी गुण बन गया है यहां
जवाब देंहटाएंआदरणीय मैम ,
हटाएंसादर नमस्ते ।
मेरे पोस्ट पर आने एवं प्रतिक्रिया देने के लिए
दिल से आभार एवं धन्यवाद । यूं ही स्नेह एवं सहयोग बनाऐं रखें ।