गुरुवार, 23 जून 2022

चाँद को छूने कि ज़िद ।



सोचता हूँ !
युं उचक्कर चाँद को छूने कि ज़िद  
जिन्दगी कि सबसे बड़ी गलती न बन जाए, 
डरता हूँ!
दिल तो कई बार टुटा है इस बार 
घर उम्मीदों का न टुट जाए।

फिक्रमंद भी हूँ और ख्वाईशमंद भी 
देवदार के पत्तों से ओस को हथेली पर
उतारने कि कोशिश 
भारी न पड़ जाए ,
लेने गए उनके होंठो कि मिठास और 
गले मीठे कि बिमारी न पड़ जाए।

हंसू जी भर के या मुस्कुराने से 
काम चल जाएगा ,
उतरूं थोड़ा और आस्मानों से या 
ख्यालों से काम चल जाएगा।

--- आतिश


_What to do ! Do am I ?_


10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आदरणीय मैम,
      मेरे पोस्ट पर आने के लिए धन्यवाद ! आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए ऊर्जा लुल्म है।

      हटाएं
  2. आदरणीय आतिश जी, नमस्ते 🙏! अच्छी कविता.
    खासकार ये पंक्तियाँ :
    लेने गए उनके होंठो कि मिठास और
    गले मीठे कि बिमारी न पड़ जाए।
    हार्दिक साधुवाद!
    कृपया दृश्यों के संमिश्रण और पृष्ठभूमि में मेरी आवाज में कविता पाठ के साथ निर्मित इस वीडियो को यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर देखें और कमेँट बॉक्स में अपने विचारों को देकर मेरा मार्गदर्शन करें. हार्दिक आभार! ब्रजेन्द्र नाथ
    यू ट्यूब लिंक :
    https://youtu.be/RZxr7IbHOIU

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मान्यवर धन्यवाद् !
      आपकी प्रतिक्रिया बहुमुल्य !

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर सृजन
    बधाई

    मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सर ,
    मेरी रचना को अपने मंच पर जगह देने हेतु
    बहुत -बहुत धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तर
    1. प्रिय बंधु ,
      प्यार भरे प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद !

      हटाएं
  6. ..सुन्दर बिम्बों वाली बहुत प्रभावशाली कविता

    जवाब देंहटाएं

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