दु:खों कि
महत्ता
सुख हमें हर पल कमजोर करती है वहीं दु:ख हमें
अगले दु:ख से लड़ने कि ताकत देती है ।
सुख हमें वेशर्व बनाती है जबकी दु:ख हमें सीमा में रहने को
वाध्य करती है अर्थात् संतुष्ठी का माध्यम बनती है ।
सुख हमें भ्रम में जीने को मजबुर करती है
वही दु:ख हमें हमारे अपनों कि पहचान कराती है ।
सुख हमें संकुचित बुद्धिमत्ता के अधीन करती है, जबकि
दु:ख हमें संसारिक प्राकृतिक हर परिस्थिति पर
विचारने को अग्रशर करती है ।
सुख सुन्दर होकर भी दु:ख का कारण मात्र बनती है
वही दु:ख कुरूप होने के बावजुद
पुँजी रूप में सुखानुभूति का माध्यम बनती है ।
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आतिश
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