कशमोकश है कैसी । कैसी
है ये वक्त कि धार । कोई अनजाना चेहरा जो बना अपना आज फिर गैरों सा लगने लगा है, न जाने क्यों धुंधली हर उम्मीद, जुड़ी हर बात उससे, हर लम्हा सपने सा लगने लगा है । न
जाने कहाँ से आ जाती है रिश्तों में हैयसीयत – औकात कि बात । न जाने क्यों आ
जाते है एक – दूसरे को बिगाड़ने और देख लेने के हालात… ।
“मोहन की माँ ने कुछ ऐसी ही बातें
बोलकर अपनी वेवकुफी भरे बड़प्पन का सबूत दिया । मालुम नहीं वो खुद को क्या बताना
चाहती थी । पर हाँ आज उन्होंने बिटिया के परिवार को उसके छोटेपन का एहसास जरूर कराया ।”
आज शायद लोग
अपनी बहन बेटी को कुछ यु शादी कर ससुराल भेजते है जैसे कोई दुकानदार अपनी दुकान से
कोई सामान बेचता है और उसके खराब होने या बिगड़नें पर ठिक करने कि गारेंटी देता है
। वस फर्क इतनी सी है कि दुकानदार अपनी सामान पर छ: महिने – साल भर या ज्यादा से
ज्यादा दो साल कि गारेंटी देता है जबकि बेटी कि गारेंटी लाइफ टाइम कि होती है ।
और होनी भी चाहिए । वो बिमार हुई तो । उसने थोड़ी ऊंची आवाज़ में बात कि तो । खाने
में नमक तेज या कम हुआ तो । भोजन समय पर नहीं मिला तो । और बहुत सी चीजें ।
कहीं न कहीं इन सब परेशानीयों के कारण ही बहुत से कुंठित
सामाजिक लोग आज लड़कियों को जन्म से पहले ही मार देते हैं । और कुछ भले लोग जन्म
के बाद किस्तों में मारते हैं । मायुस से नजर आते हैं बेटियों के पिता और सहमी सी
माँ । समस्या इतने गंभीर नहीं है यदि थोड़ी सोच बदली जायें ।
“रिश्तों में दावत और रोटियां ढुंढने वालों
अगर साख
बचानी है अपनी और दुनिया की
तो रिश्तों
में बेटियों को ढुंढों ।“
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आतिश
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