Dear ज़िन्दगी !
बड़ा होकर भी देख लिया ...समझदारी कि चादर ओढ़बुढ़ापे को भी टटोल लिया ...अब नासमझ बचपन किगहरी चोट भी मासुम सी लगती है . . .जवानी कि ठोकड़ों के आगेवो मौन सी दिखती है / /इरादतन कौन बड़ा होना चाहता है ज़नाव ...वो तो वक्त है जो उम्र का एहसास कराती है / /पीछे छुटने का डर , आगे निकलने कि होड़
गिरने का अफ़सोस , संभलने का शऊरउफ् ! तुझे ( ज़िन्दगी )जीने कि ये जद्दोजहद... //कैसे बतायें ! समझायें !
हम ... लोगों कोअपने दिल कि कैफ़ियत / /... आतिश
बहुत प्रभावशाली लेखनी है आपकी बहुत सुंदर लिखते हैं आप,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंलगता है कि दिल की बात शब्दों में पिरो दी।