शनिवार, 2 सितंबर 2023

Dear ज़िन्दगी ...

 




 

 







 

Dear ज़िन्दगी !

बड़ा होकर भी देख लिया ... 
समझदारी कि चादर ओढ़
बुढ़ापे को भी टटोल लिया ... 
अब नासमझ बचपन कि 
गहरी चोट भी मासुम सी लगती है . . . 
जवानी कि ठोकड़ों के आगे 
वो मौन सी दिखती है / /

इरादतन कौन बड़ा होना चाहता है ज़नाव ...
वो तो वक्त है जो उम्र का एहसास कराती है / /

पीछे छुटने का डर , आगे निकलने कि होड़  
गिरने का अफ़सोस , संभलने का शऊर 
उफ् ! तुझे ( ज़िन्दगी )जीने कि ये जद्दोजहद... //

कैसे बतायें ! समझायें !  
हम ... लोगों को 
अपने दिल कि कैफ़ियत / /

 ... आतिश

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्रभावशाली लेखनी है आपकी बहुत सुंदर लिखते हैं आप,

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना।
    लगता है कि दिल की बात शब्दों में पिरो दी।

    जवाब देंहटाएं

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