सोमवार, 20 दिसंबर 2021

हाँ ! औरत हूँ मैं...

 


हाँ ! औरत हूँ मैं...
 
ये कैसा हमदर्द है जो दर्द दिये जाता है
और – और – और मेरी सिसकीयों को
मेरी मौन स्‍वीकृति समझता है ।
 
ये कैसा हमदर्द है जो खुद ही तोड़ मुझे
जोड़ने का दमखम भरता है
मेरी समपर्ण को मेरी लाचारी कहता है।
 
ये कैसा हमदर्द है जो खुद को आईना 
मुझे धुंधला ख्‍वाव बताता है
वस मुझे छोड़ सारी दुनिया को मेरी गलतियां
गिनाता है।
 
ये कैसा हमदर्द है जो मेरे उफ़ को 
मेरी भुल बताता है
खुद को नहीं सब ठीक है -
सब ठीक है वस मुझे समझाता है।
 
ये कैसा हमदर्द है जो अपने नाम के साथ
नाम जोड़कर मेरा एहसान जताता है
चुटकी भर सिंदुर के बदले,
पहचान को मेरी कोई गुजरा इतिहास बताता है। 

हाँ ! औरत हूँ मैं –
दर्द की हर परिभाषा को समझती हूँ 
तभी तो बेटी से माँ बनने तक 
हर रिश्तें को बड़े जतन से सहेजती हूँ।
 
--- आतिश
 
 
 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    जवाब देंहटाएं
  2. औरत के दर्द को बयां करती बहुत ही मार्मिक व सटीक रचना
    एक-एक पंक्ति बहुत ही बेहतरीन है!
    और विचार करने पर मजबूर करती है
    सच में काबिले तारीफ...💐

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. माननीय ,
      आपका ' लाजबाव ' ऊर्जा तुल्य है ।
      धन्यवाद !

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. आदणीय ,
      अपना स्नेह एवं सहयोग बनायें रखे।
      धन्यवाद!

      हटाएं

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