शाम है, ख्वावों कि एक रंगीन किताब है
और उम्मीदों कि एक महफिल भी,
पर समेटने वाला कोई नहीं ।
एक तख्ती है कागज और कलम भी ,
स्याही सुख चुकी है पड़ी-पड़ी अरमानों कि
पर लिखने वाला कोई नहीं ।
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आतिश
Dear ज़िन्दगी ! बहुत दिन हुआ तुझसे बिछड़े हुए ... यार कोई आईंना लाओं, देखना है कितना बदला हूँ मैं ।। यादों कि किचड़ में रोज उतरता ह...
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