गुरुवार, 29 जुलाई 2021

शाम है, ख्‍वावों कि एक रंगीन किताब है !!

 





शाम है, ख्‍वावों कि एक रंगीन किताब है

और उम्‍मीदों कि एक महफिल भी,

पर समेटने वाला कोई नहीं ।

 

एक तख्‍ती है कागज और कलम भी ,

स्‍याही सुख चुकी है पड़ी-पड़ी अरमानों कि

पर लिखने वाला कोई नहीं ।

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आतिश 

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