रविवार, 25 जुलाई 2021

रिश्‍तों की खनक

 


रिश्‍तों की खनक

 


रिश्‍तें-रिश्‍तेंदारों कि एक अनूठी सी होड़ है ।
अंधों की वस्‍ती में उजालों की शोर है ।

मत सुन मतलवी कदमों की खनक
जो कभी तेरी तो कभी मेरी ओर है ।

राहत नहीं देती शीतलहरी की ठंडी रात भी
जो जलाते है अपने मन का पोर-पोर है ।

यु वरसती है शर्द आंखें मानों पलकों 
के बीच ठहरा कोई निज बादल घनघोर है ।

छिल जाते है पांव ख्‍वावों के भी जब
किसी गैर से अपने का नींदों में होता ठौर है ।
 --- आतिश

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी रचना जितनी तारीफ करूँ कम है

    यु वरसती है शर्द आंखें मानों पलकों
    के बीच ठहरा कोई निज बादल घनघोर है ।
    छिल जाते है पांव ख्‍वावों के भी जब
    किसी गैर से अपने का नींदों में होता ठौर है ।

    अक्सर दिल से रिश्ते को निभाने वाला इंसान ही रातों में रोता है, रिश्ते में छल कपट करने वाला तो घोड़े बेच कर सोता है!

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